Saturday 5 April 2014

महान अन्ना का महान अन्याय

ये सारे एनजीओज सरकार से भी पैसा लेते हैं और विदेशों से भी प्रचुर मात्रा में धन लेते हैं और चूंकि अन्ना हजारे एवं ममता बनर्जी के मिलने से प्रो-पीपुल इकोनॉमी के पक्ष में माहौल बनने की संभावना प्रबल हो गई थी, इसलिए यह साजिश हुई कि अगर अन्ना भाजपा, कांग्रेस और उनके पुराने सहयोगियों की बात मानकर ममता बनर्जी से अलग न हों, तो इन फॉरेन फंडेड एनजीओज को अन्ना को ममता से अलग करने के लिए भेजा जाए. इन एनजीओज के प्रतिनिधियों में दुर्भाग्यवश प्रो-मार्केट इकोनॉमी का विरोध करने वाले वामपंथी भी शामिल हो गए, क्योंकि उन्हें लगा कि इसी से ममता बनर्जी को बंगाल में परास्त किया जा सकता है. उनके लिए देश की जनता का हित गौण हो गया, ममता बनर्जी से लड़ाई प्रमुख हो गई. पिछले एक हफ्ते से ये एनजीओज अन्ना को घेर रहे थे और इनका मकसद अन्ना और ममता की प्रो-पीपुल इकोनॉमी को बर्बाद करना था. इसमें कॉरपोरेट सेक्टर भी शामिल हो गया, क्योंकि उसे डर था कि अन्ना और ममता का साथ उसे भी सार्वजनिक ज़िम्मेदारी निभाने के लिए मजबूर करेगा या दबाव डालेगा. इन लोगों ने अन्ना को संत से राजनीतिज्ञ की श्रेणी में खड़ा कर दिया और यह कहा कि भीड़ कम है, इसलिए नहीं जाइए.  मैं श्री अन्ना हजारे द्वारा 14 मार्च को लगाए गए आरोप को इसलिए स्वीकार करता हूं, क्योंकि ये आरोप एक ऐसे व्यक्ति द्वारा लगाए गए हैं, जिनका मैं हमेशा सम्मान करता रहा हूं. मैं हमेशा से मानता रहा हूं कि अन्ना हजारे इस देश के ग़रीब, वंचित, अल्पसंख्यक, खासकर मुसलमानों एवं आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के प्रति संवेदनशील हैं और उनकी ज़िंदगी में बदलाव चाहते हैं. मैं उनका सम्मान उनकी सादगी या सफेद कपड़े व टोपी, मंदिर में रहने की वजह से नहीं करता हूं, बल्कि उनके आर्थिक एजेंडे की वजह से मैं उनका आदर करता हूं. उन्होंने जो 17 सूत्रीय आर्थिक एजेंडा सभी पार्टियों को भेजा, वह समावेशी विकास की कुंजी है. मैं यह मानता हूं कि देश की ज़्यादातर पार्टियां देश की अर्थव्यवस्था को बाज़ारवाद के चक्रव्यूह में फंसा देना चाहती हैं. कांग्रेस, भाजपा और आम आदमी पार्टी देश में नव-उदारवादी अर्थव्यवस्था को स्थापित करना चाहती हैं. नव-उदारवाद अमीरों को अमीर बनाता है और ग़रीबों को और भी ग़रीब बनाता है. साथ ही यह देश को अराजकता, गृहयुद्ध और सांप्रदायिकता के कुचक्र में धकेल देने वाली नीति है. अन्ना का आर्थिक एजेंडा इस नव-उदारवादी व्यवस्था के विरोध में था, इसलिए मैंने अन्ना का साथ दिया. जब अन्ना जी के समर्थकों ने एक राजनीतिक दल बनाया और वह अपने गांव चले गए और चुप होकर बैठ गए, तो मुझे उसका अफ़सोस हुआ. जनरल वी के सिंह के साथ मैं अन्ना जी के पास गया और परिणामस्वरूप अन्ना जी ने  पिछले 30 जनवरी, 2013 को एक विशाल रैली पटना के गांधी मैदान में की. अन्ना ने इस रैली का नाम जनतंत्र रैली रखा, जनतंत्र मोर्चा नामक एक संगठन का ऐलान किया और इंडिया अगेंस्ट करप्शन एवं उनके नाम से चल रहे सभी संगठनों से रिश्ता तोड़ लिया. पटना की इस रैली में अन्ना ने यह घोषणा की कि उनके सारे कार्यक्रम जनतंत्र मोर्चा के तहत किए जाएंगे. इस रैली के पीछे की कहानी यह है कि इस रैली की घोषणा अन्ना ने पहले ही कर दी थी. अन्ना के सारे साथियों ने उनका साथ छोड़ दिया. अन्ना को पता चल चुका था कि उनके पुराने साथी आंदोलन के नाम पर चंदा उठाते हैं और उसे चट कर जाते हैं. जब अन्ना के साथियों ने उन्हें छोड़ दिया, तब मैंने और जनरल वी के सिंह ने अन्ना के कहने पर पटना में रैली की ज़िम्मेदारी ली. इस रैली में हमने कई एनजीओ वालों को मंच पर आने की अनुमति दी. मजेदार बात यह है कि इन लोगों ने सरकार के ख़िलाफ़ एक भी शब्द नहीं बोला. एक ने तो भजन गाकर अपना भाषण ख़त्म कर दिया था. इन्होंने अन्ना का साथ देने का वादा भी किया था, लेकिन जब लगा कि अन्ना के इरादे सरकार के भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ तीखा प्रहार करने वाले हैं, जनरल वी के सिंह कांग्रेस पर हमला करने वाले हैं, तो ये अन्ना से दूर हो गए. फिर किसी कार्यक्रम में इन्होंने साथ नहीं दिया. पटना की रैली के बाद अन्ना ने मुझे और जनरल वी के सिंह से पूरे देश में यात्रा करने की इच्छा जताई. हमने अन्ना की इच्छा को आदेश माना और जनतंत्र यात्रा का आयोजन किया. 30 मार्च, 2013 से अन्ना ने देश में जनतंत्र यात्रा शुरू की और अक्टूबर तक वह 28 हजार किलोमीटर से ज़्यादा छह प्रदेशों में घूमे और आठ सौ से ज़्यादा सभाएं कीं. उनकी इन सारी सभाओं का आयोजन जनतंत्र मोर्चा ने किया. अन्ना जी ने देश की राजनीति में हस्तक्षेप का मन बनाया और अपने दस्तखत से सारे राजनीतिक दलों को एक पत्र भेजा, जिसमें सत्रह सूत्रीय कार्यक्रम के बारे में उनकी राय मांगी. इस पत्र को लिखने के बाद अन्ना ने अपनी सभाओं में जगह-जगह यह इशारा किया कि वह ऐसे उम्मीदवारों का समर्थन करेंगे, जो साफ़ छवि वाले होंगे और निर्दलीय होंगे. अफ़सोस की बात यह है कि किसी एक भी उम्मीदवार ने उनसे संपर्क नहीं किया. दिसंबर में पश्‍चिम बंगाल की मुख्यमंत्री के दल ने उनके पत्र का जवाब दिया, जिसमें सत्रह सूत्रीय कार्यक्रम को पूर्णत: स्वीकार किया गया. अन्ना ने उस पत्र को अपनी दराज में छुपाकर रख लिया, प्रेस को लीक नहीं किया. 13 फरवरी को मुकुल राय श्री अन्ना हजारे से मिलने गए और उन्हें विश्‍वास दिलाया कि ममता बनर्जी उनके आर्थिक कार्यक्रम का समर्थन करती हैं. तब वहां अन्ना हजारे ने मीडिया से कहा कि वह ममता बनर्जी के उम्मीदवारों का समर्थन करेंगे और उनके उम्मीदवार ज़्यादा से ज़्यादा जीतें, इसके लिए प्रयास करेंगे और ममता बनर्जी को प्रधानमंत्री बनाएंगे. इसी मीटिंग में अन्ना हजारे और मुकुल राय के बीच तय हुआ कि दिल्ली में 19 फरवरी को दोनों प्रेस कांफ्रेंस करेंगे और 18 फरवरी की रात दोनों की पहली मुलाकात होगी. अन्ना हजारे ने ममता बनर्जी की भूरि-भूरि प्रशंसा की. 18 तारीख को अन्ना हजारे दिल्ली आए और ममता बनर्जी से उनके घर पर मिले, खाना खाया और लंबी बातचीत की. इसके बाद 19 फरवरी को दोनों ने एक साथ प्रेस कांफ्रेंस की. इस प्रेस कांफ्रेंस में अन्ना हजारे ने फिर दोहराया कि वह ममता बनर्जी को प्रधानमंत्री बनाना चाहते हैं और उनके लिए सारे देश में चुनाव प्रचार करेंगे. दिल्ली की रैली अन्ना हजारे के समर्थकों द्वारा आयोजित की गई थी और इसका नाम जनतंत्र रैली रखा गया था. अन्ना हजारे ने स्वयं रैली के पोस्टर देखे थे और उन्हें स्वीकृत किया था. इससे पहले अन्ना हजारे ने मुंबई में एक घंटे की एड फिल्म की शूटिंग की, जो बताता है कि अन्ना यह एडवर्टिजमेंट बनवाने के लिए कितने उत्सुक थे. दरअसल, अन्ना यह चाहते थे कि कैसे तृणमूल सत्ता के नज़दीक पहुंचे और सत्रह सूत्रीय कार्यक्रम को लागू करे. 12 मार्च की रैली प्रस्तावित हुई और इसे अन्ना के समर्थकों ने आयोजित किया. इन समर्थकों में किसान नेता, छात्रनेता एवं अन्ना के पुराने वालंटियर्स शामिल थे. इस रैली के लिए तृणमूल कांग्रेस ने बहुत साधारण आर्थिक सहायता भी दी. रैली से तीन दिन पहले दिल्ली में भारी बारिश हुई और रैली के दिन सुबह 5 बजे तक पानी बरसा और दिल्ली के आसपास ओले गिरे. बहुत सारे लोग, जो रैली में आना चाहते थे, वे फसल की बर्बादी की वजह से नहीं आ सके. दिल्ली के लोगों को लगा कि इतनी बारिश से रामलीला मैदान की व्यवस्था खराब हो गई होगी, इसलिए वे नहीं आए. उस दिन वर्किंग डे भी था. 2011 के अनशन के दौरान भी देखा गया था कि वर्किंग डे में लोग कम आते थे, जबकि शनिवार-रविवार को ज़्यादा लोग आते थे. एक और बड़ी वजह रही. इस दौरान दिल्ली में परीक्षाएं चल रही हैं, इस वजह से भी अन्ना को चाहने वाले लोग अपेक्षित संख्या में नहीं आ सके. रैली के दिन अन्ना की आंख में इंफेक्शन हो गया और उनकी आंख से लाल पानी निकलने लगा. ममता बनर्जी रैली में आईं, लेकिन अन्ना रैली में नहीं आए. जब उनसे कारण जानने की कोशिश की गई, तो उन्होंने ममता बनर्जी को संदेश भेजा कि उनकी तबियत खराब है, इसलिए वह रैली में नहीं आ रहे हैं. हालांकि, यह ख़बर बाहर आ चुकी थी कि अन्ना हजारे को रैली में आने से रोकने के लिए एनजीओज ने अन्ना की घेराबंदी कर ली है. 13 और 14 तारीख को इन एनजीओज की बैठक अन्ना हजारे के साथ हुई और इन्होंने अन्ना हजारे के साथ मिलकर एक राजनीतिक फ्रंट बनाने का फैसला किया. अफ़सोस की बात यह है कि एक भी एनजीओ अन्ना की जनतंत्र यात्रा में पिछले वर्ष की जनवरी से लेकर अब तक कहीं नहीं रहा, स़िर्फ एक व्यक्ति मध्य प्रदेश में साथ रहे और वह अन्ना को यह समझाते रहे कि आप अगर ममता का समर्थन करेंगे, तो वामपंथियों का बंगाल में सफाया हो जाएगा. दरअसल, अन्ना और ममता का साथ आना न स़िर्फ नव-उदारवादी अर्थव्यवस्था के लिए ख़तरा था, बल्कि जिस तरह से ममता ने अल्पसंख्यकों का विश्‍वास जीता है, वह उत्तर भारत के कई राज्यों में कई बड़े-बड़े राजनीतिक दलों की राजनीति के लिए पूर्ण विराम साबित हो सकता था. दिल्ली में ममता और अन्ना की जोड़ी आम आदमी पार्टी के लिए ख़तरा बन चुकी थी. अन्ना और ममता 2014 के आम चुनाव पर ही नहीं, बल्कि देश की राजनीति पर असर डालने वाले थे. इसलिए यह समझा जा सकता है कि अन्ना पर कई तरह का दबाव डाला गया होगा. अन्ना ने ममता से रिश्ता तोड़कर भारत में एक नई राजनीतिक पहल का गला घोंटा है, साथ ही अपने समर्थकों को निराश किया है. अन्ना ने मेरे ऊपर धोखाधड़ी का इल्जाम लगाया है. मैं अन्ना का बहुत आदर करता हूं. अब तक अन्ना के विचारों का सम्मान करते हुए मैंने उनके आंदोलन का समर्थन किया और साथ दिया है. मैंने अपना यह रोल कभी नहीं माना कि मैं अन्ना के लिए भीड़ इकट्ठा कराऊंगा. अन्ना के जिन समर्थकों ने रैली का आयोजन किया था, उनके पास किराए की भीड़ लाने के लिए पैसे नहीं थे. अगर अन्ना हजारे के नाम पर लोग नहीं आए और प्राकृतिक परिस्थितियों के कारण लोग नहीं आए, तो इसमें धोखाधड़ी कहां हुई? अन्ना के नाम पर दस लोग आए या दस हजार लोग आए, वे अन्ना के समाज परिवर्तन और उनके सत्रह सूत्रीय कार्यक्रम के बारे में जानना चाहते थे. जो भी लोग आए, वे अन्ना के नाम पर आए और उन्हें बहुत निराशा हुई, क्योंकि वे अन्ना को सुनने आए थे. अन्ना सात्विक संत हैं, वह आसाराम बापू नहीं हैं कि शर्त रखें कि जब तक इतने लोग नहीं होंगे, तब तक हम बोलने नहीं जाएंगे. अन्ना समाज परिवर्तन का सपना देखते हैं. अन्ना रामलीला मैदान में जो बोलते, उन्हें सुनने आए लगभग दस हजार लोग तो सुनते ही, साथ ही देश-विदेश का मीडिया भी वहां मौजूद था. सारी दुनिया सत्रह सूत्रीय एजेंडे पर उनके विचार सुनती, लेकिन अन्ना को वहां न जाने देने का षड्यंत्र प्रो-मार्केट से जुड़े और सरकारी मंत्री से जुड़े एनजीओज के नेताओं ने सफल कर दिया. मैं पत्रकार हूं. मैं अन्ना के विचारों का समर्थन कर सकता हूं, साथ चलकर शरीर से समर्थन कर सकता हूं, बोलकर समर्थन कर सकता हूं, लेकिन मैं उनके लिए भीड़ एकत्र करने का औजार हूं, इसकी मैंने कल्पना नहीं की थी. अगर वह मुझसे कह देते कि वह पचास हजार लोगों से कम की सभा में नहीं आएंगे, तो फिर मैं उनसे न सभा में जाने को कहता और न सभा के आयोजकों की मदद करता. ममता बनर्जी ईमानदार और लोगों के हक़ों के लिए लड़ने वाली नेता हैं और अन्ना हजारे गांव को मुख्य शक्ति बनाने का सपना देखते हैं, इसीलिए इन दोनों के मिलन की भूमिका में मैंने थोड़ा-सा योगदान दिया. उस सभा में दरअसल राजनेता होने के नाते ममता बनर्जी को नहीं जाना चाहिए था, क्योंकि आठ से दस हजार की भीड़ थी और संत होने के नाते अन्ना हजारे को जाना चाहिए था. लेकिन, यह दुर्भाग्य है कि भूमिका बदल गई, ममता बनर्जी ने संत का काम किया और अन्ना हजारे ने राजनेता का काम किया. इसलिए, मैं विनम्रता से श्री अन्ना हजारे और अपने सभी मित्रों से जानना चाहता हूं कि अगर अन्ना को सुनने भीड़ नहीं आई, तो इसमें मैंने धोखाधड़ी क्या की? यह रैली जनतंत्र रैली थी और सत्रह सूत्रीय कार्यक्रम के ऊपर रैली थी. इस बहस का क्या मतलब है कि यह किसकी रैली थी? रैली में जनता थी और सत्रह सूत्रीय कार्यक्रम के बारे में अन्ना को बताना था. अन्ना ने कभी यह साफ़ नहीं किया था कि मैं तृणमूल कांग्रेस की रैली में नहीं जाऊंगा. अन्ना ने 14 तारीख को एनजीओज की प्रेस कांफ्रेंस में दो परस्पर विरोधी बातें कहीं. उन्होंने कहा कि मेरी तबीयत खराब नहीं थी और मैं वहां इसलिए नहीं गया कि वहां भीड़ नहीं थी. जबकि 12 तारीख को अन्ना ने आन रिकॉर्ड यह कहा था कि मेरी तबीयत खराब है. अब इन दोनों बयानों के बीच ही कहीं सच्चाई छिपी हुई है. अन्ना हजारे ने यह भी कहा कि मुझे रैली का सही समय नहीं बताया गया, पहले 11 बजे कहा गया और बाद में एक बजे. अब क्या दो घंटे के इस अंतराल को अपराध माना जाना चाहिए? इसमें मैंने कौन सी धोखाधड़ी की? 30 जनवरी, 2013 की रैली की तैयारी से लेकर 12 मार्च, 2014 की जनतंत्र रैली तक अन्ना हजारे के सारे कार्यक्रमों पर जितना पैसा खर्च हुआ, उसका चंदा नहीं किया गया. किसी से सार्वजनिक तौर पर पैसे नहीं मांगे गए. अन्ना हजारे की सात्विकता, सच्चाई, ईमानदारी में विश्‍वास रखने वाले लोगों के समूह ने अपनी गाढ़ी कमाई में से अंशदान देकर इन सारे कार्यक्रमों को चलाया. अन्ना हजारे ने किसी से न एक पैसा देने के लिए कहा और न कभी यह पूछा कि सारे कार्यक्रम किस तरह चल रहे हैं? अन्ना हजारे की प्रेस कांफ्रेंस में उनके साथ इस बार वे चेहरे थे, जो सरकारों से बड़ा फंड लेकर अपना एनजीओ चलाते हैं और विदेशों से पैसा लेने में उन्हें कोई शर्म नहीं आती. अन्ना हजारे अपने साथ के लोगों से कई बार कह चुके हैं कि राजनीति में विदेशी पैसा नहीं आना चाहिए, देश की राजनीति देश के पैसे से होनी चाहिए. उनका इशारा अपने एक पूर्व शिष्य की तरफ़ था. आज अन्ना हजारे के साथ एनजीओ के नाम पर विदेशी फंड लेकर, सरकारी पैसा लेकर काम करने वाले लोग नज़र आ रहे हैं, जो देश की राजनीति में हस्तक्षेप कर विधानसभा और लोकसभा में जाने के लिए एक राजनीतिक फ्रंट बनाने की बात कर रहे हैं. मैं अन्ना हजारे का सम्मान करता रहूंगा और उनकी देशसेवा के काम में जितनी मदद हो सकेगी, करता रहूंगा. अफ़सोस मुझे इस बात का है कि मैंने जितने तथ्य सामने रखे हैं, वे सब श्री अन्ना हजारे द्वारा दिए गए तथ्य हैं. अगर वे कुछ बातें भूल गए हों, तो इसे पढ़कर शायद कुछ याद करें और अपना रास्ता सुधार सकें. मैं यह श्री अन्ना हजारे के लिए लिख रहा हूं, ताकि वह अपनी स्मृति को ताजा कर सकें. अफ़सोस इस बात का है कि अन्ना हजारे ने जो भाषा इस्तेमाल की और मेरे ऊपर धोखाधड़ी का आरोप लगाया, वह पूर्णत: असत्य, अनर्गल है और एक संत की भाषा नहीं है. यहां मैं एक और महत्वपूर्ण बात साफ़ कर दूं कि अन्ना हजारे ने 12 तारीख के बाद न मुझे फोन किया, न बात की और न यह बताया कि आपके बारे में लोग ऐसा कह रहे हैं. जिन लोगों ने अन्ना हजारे के लिए संपूर्ण समर्पण के भाव से काम किया, आज वे खुद को ठगा-सा महसूस कर रहे हैं और इसे महान अन्ना का महान अन्याय मान रहे हैं. ईश्‍वर से प्रार्थना है कि अन्ना हजारे को बीती बातें याद आ जाएं और अन्ना अपने क़दम विदेशी फंड से संचालित एनजीओज को मजबूत करने की जगह देश के ग़रीबों, दलितों, अल्पसंख्यकों और वंचित तबके के लोगों को मजबूत करने के लिए उठाएं. - See more at: http://www.chauthiduniya.com/2014/03/mahaan-anna-ka-mahaan-anyay.html#sthash.hjEKxGNr.dpuf

4 comments:

  1. Tuesday, August 16, 2011

    मित्रो हम भारत से "भ्रष्टाचार" मिटाने के लिये इतने ही कटिबद्ध है जितने की एक माँ अपने बच्चे के मुह से गंदगी साफ़ करने के लिए होती है. भ्रष्टाचार देश के ऊपर लगा वो कलंक है जिस से देश के तिरंगे का रंग भी धूमिल हो रहा है. यह भारत माता के दुपट्टे पर वो गन्दा दाग है जिस से भारत माता भी शर्मिंदा है. परन्तु क्या श्री अन्ना हज्जारे जी वास्तव में इस दाग को हटाना चाहते है या सिर्फ चंद लोगो के मोहरे बनकर देश को एक अँधेरी खाई में गर्त करना चाहते है. उनके इस गैर जिम्मेदार रवैये और अदुर्दार्शिता के कारण "मैं" उनके आन्दोलन का समर्थन नहीं करता. परन्तु कांग्रेस सरकार का विरोध करता हूँ इस बात के लिए की देश में विरोध करने का अधिकार वो देश के नागरिको से नहीं छीन सकती है.

    मैं अन्ना हज्जारे के आन्दोलन का विरोधी हूँ क्योंकि -

    श्री अन्ना हज्जारे एक लोकतान्त्रिक व्यवस्था को ख़तम करने की साजिश में शामिल है. हो सकता है की भारत की वर्तमान लोकतान्त्रिक व्यवस्था में कई खामिया हो परन्तु न तो श्री अन्ना हज्जारे और न ही उनकी टीम किसी वैकल्पिक व्यवस्था का खाका देश के सामने रख पाई और न ही दुनिए के १२० करोड़ लोगो के लिए ही कोई आस ही जगा पाई सिवाए उनको भरमाने के. यह सच है की हम देश में हिन्दू गौरव से ओतप्रोत शासन पद्दति चाहते हो परन्तु वो तभी लागु होगी जब देश का एक-एक नागरिक उसकी सहमती देता हो जो लोकतान्त्रिक पद्दति पर वजूद हो. देश के जनमानस को किसी वैकैल्पिक व्यवस्था के खाके के बिना भरमाना देश को "गृहयुद्ध" में झोकना है.
    श्री अन्ना हज्जारे एक बहुत ही इमानदार, सादगी और विनम्रता वाले शख्स है परन्तु देखना यह है की क्या इतने बड़े आन्दोलन जिसको की वो "आजादी की दूसरी लड़ाई" कहेते है के लिए अनुभवी है? देश पहेले से ही एक इमानदार, सादगी, विनम्रता वाले प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह जी के प्रताप से भयानक संताप में है. कारण उनके भोले चहरे के पीछे सत्ता के सञ्चालन करने वाले "घाघ" है. तो क्या मैं यह न मान लू की इन अन्ना जी के पीछे इन्ही को संचालित करती शक्तिया भी बहुत बड़ी "घाघ" है. इन घाघो की भविष्य की रणनीति मुझे नहीं पता इसलिए मैं आपका विरोध करता हूँ.
    श्री अन्ना हज्जारे जी की जो वर्तमान टीम है उसकी पृष्टभूमि भी "संदिघ्ध" है. श्री प्रशांत भूषण जी का पी.आई.एल. वाले इशु पर कोई स्पष्टीकरण नहीं आया जो अमर सिंह जी ने मुद्दा उठाया था. जब आप किसी बड़े आन्दोलन को उठाते है तो आपका व्यक्तित्व और संचालको का चरित्र बहुत ही पारदर्शी होना चाहिए. जब श्री अन्ना जी अपने को दूसरा गाँधी कहलवाने में "मन्त्र मुग्ध" होते है तो गाँधी जी के जीवन भी जीये. खाली मीठा मीठा गल्प गल्प और कडवा कडवा थू थू क्यूँ? जब तक महात्मा गाँधी भाए तब तक ठीक और जब वो सूट न करे तब छत्रपति शिवाजी. वहा! क्या दोहरे माप दंड है. जब राजनेता उनके पास आये जैसे की साध्वी उमा भारती आई थी तो उनको भगाया गया की वो नेता है और बाद में नेताओ के घर जा जा कर फोटो खिचवाये श्री अन्ना जी ने. तो क्या यह दोहरा माप दंड नहीं है. श्री अन्ना हज्जारे जी और उनकी टीम से मेरी गुजारिश है की देश में तथाकथित "आजादी की दूसरी लड़ाई " की हुंकार भरने वालो का दोहरा चरित्र स्वीकार्य नहीं है. यह कोई खो खो नहीं हो रहा की आप जब मर्जी जिस मर्जी को आगे कर दे और जब मर्जी भाग खड़े होए. आप ने देश के नोजवानो को घर से बहार निकालने का कृत्ये किया है परन्तु आप नहीं जानते इस जिन्न को बहार निकालना आसान है परन्तु वापस भेजने का चरित्र आपका है ही नहीं. इस दोहरे मापदंड से मैं डरता हूँ इसलिए मैं आपका विरोध करता हूँ.

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  2. श्री अन्ना जी मैं आपकी बहुत इज्जत करता हूँ और आपकी बुजुर्गता का सम्मान करता हूँ इसलिए में आपके उपवास और अनशन का भी विरोध करता हूँ. आप न तो बाबा श्री राम देव की तरह योगी है और न ही आप का स्वास्थ्य आपको शाररिक पीड़ा देने की इजाजत ही देता तो क्यूँ नहीं आपके आस पास मंडराते "हट्टे कट्टे" नोजवान अनशन और उपवास रख लेते है. आपके अगल बगल वाले संधिग्ध चरित्र के लोग जो स्वयं अनशन न करके सिर्फ आपकी जय जय कार करना ही इतिश्री मानते है उनके संधिग्ध आचरण के समझ में न आने के कारण मैं आपका विरोध करता हूँ.
    मैं बड़े दावे के साथ कह सकता हूँ की श्री अन्ना हज्जारे जी आप स्वयं भी अपने तथाकथित "जन लोकपाल" बिल की बारीकिय भी नहीं जानते और बिना अपने सहायक केजरीवाल जी के सहयता के आप इस पर "बहस" भी नहीं कर पाते. क्यूंकि आप अपने पथ से स्वयम अनजान है इसलिए मैं आपका विरोध करता हूँ.
    श्री अन्ना जी आपके और आपके हजारो समर्थको में "मुद्दे" पर भटकाव है. मुझे आपके चारो और घिरे चंद समर्थको के अलावो कोई भी "लोकपाल" के विरोध और पक्ष में नहीं लगा सभी भ्रष्टाचार का मुद्दा मान कर आपके साथ है. परन्तु न तो आपने आज तक "भ्रष्टाचार" कैसे हटाया जाये और "काला धन" देश के बहार से कैसे लाया जाये पर आपने अपनी बात रखी सिर्फ और सिर्फ "जन लोकपाल" की तोता रट ही लगा रखी है. आपके और आपके समर्थको के बीच की इस गहेरे "भ्रम" को मीडिया ने अपने शोर से दबा रखा है. अचानक आपके प्रति मीडिया के इस प्रेम ने मुझे शंका में डाल रखा है. मीडिया का आपको जरुरत से ज्यादा या यूँ कहे की आपके आन्दोलन का सञ्चालन मीडिया ही कर रहा है ने मुझे शंकित किया है. इस घोर शंका के कारण मैं आपका समर्थन नहीं करता.
    श्री अन्ना हज्जारे जी देश अब बहुत समझदार होगया है. १९८४ में देश ने एक मासूम चहरे "श्री राजीव गाँधी" जी को देख कर आंखे मूंद कर ४०० से भी ज्यादा लोकसभा की सीटे दे दी थी. लोग जानते है उस मासूम ने देश को "कुत्रच्ची और एंडरसन" के हाथो बेच दिया था.

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  3. फिर देश ने "एक त्याग की देवी" श्री मति सोनिया गाँधी जी के चहरे पर जाकर सप्रंग को सत्ता में बैठाया था जिसका कुपरिणाम देश आज तक भुगत रहा है. तो अन्ना जी में आपकी मासूमियत से भ्रमित होकर आपका समर्थन नहीं कर पा रहा हूँ.
    श्री अन्ना जी आप स्वयं राजनितिज्ञो के विरोधी है और अपने मंच पर उनके आने को भी पसंद नहीं करते है. देश पहले से ही वर्तमान प्रधानमंत्री के गैर राजनितिक होने का खामियाजा भुगत रहा है. वो चाहए आपका आन्दोलन हो, महंगाई हो, तेलंगाना हो, नक्सलवाद हो, कश्मीर हो या फिर लोकपाल बिल सब पर श्री मनमोहन सिंह जी की राजनितिक अपरिपक्वता की छाप है. हमें मालुम है १२० करोड़ के लोगो को कोई इन्द्रा गाँधी, जवाहरलाल नेहेरू, अटल बिहारी या लाल बहदुर शास्त्री ही संभाल सकता है. कोई खाली टोपी लगा कर चार एन.जी.ओ., वकील बाप बेटा और एक नोकरशाह से देश में महात्मा गाँधी और जय प्रकाश नारयण नहीं बन सकता. देश अब किचेन केबनेट या एन जी ओ टाइप नुकड़ नाटको पर भरोसा नहीं कर सकता. मैं देश के "राजनितिक" लोगो को समर्थन करता हूँ और उन्ही के नेत्रित्व में देश के बागडोर देखना चाहता हूँ क्यूंकि पिछले ६५ वर्षो से में देश को बढ़ते देख रहा हूँ चाहे गति धीरे ही क्यूँ न हो. उनको पसंद करता हूँ क्यूंकि कम से कम उन में कुछ हद तक पारदर्शिता तो है. उनको आज नहीं पर पांच साल बाद हटाने का सपना तो देख ही सकता हूँ परन्तु क्या मैं आपको हटा सकता हूँ? आप आन्दोलन का दम भी भर रहे हो और अपनी टोली के पारदर्शिता भी नहीं चाहते हो. इस सच्चाई को स्वीकार न करने वाले शख्स के साथ मैं नहीं खड़ा हो सकता इसलिए मैं आपका विरोध करता हूँ.
    क्या यह सच नहीं की आप १६ अगस्त को मीडिया का सहारा लेकर देश की संसद को अपमानित नहीं करना चाहते थे. क्या द्रश्य होता वो जब एक तरफ संसद में शोरशराबा हो रहा होता और दूसरी और आप "ध्यान" मुद्रा में अनशन कर रहे होते. देश के मानस पटल पर क्या सन्देश जाता. क्या आप नहीं जानते? क्या आप १२० करोड़ लोगो के लोकतंत्र को अपनी तानाशाही से झुकाना नहीं चाहते थे. ६५ साल के लोकतंत्र और देश के लाखो शहीदों के बलिदान से मिली आजादी के भारत को अपमानित होने से बचाने के लिए मैं आपका विरोध करता हूँ.
    यह कौन झुठला सकता है की १५ अगस्त भारत का स्वतंत्रता दिवस है. है कोई जो अपने स्वतंत्रता दिवस को काला दिवस मनाता है. जो आपने ८से ९ बजे १५ अगस्त को लोगो को अँधेरे में धकेलने के कृत्ये किया है क्या वो नक्सलियों के आन्दोलन से मेल नहीं खाता जो हर स्वतंत्रता दिवस पर बंद की घोषणा करते है. क्यूँ आपने १५ अगस्त का दिन चुना इस अन्धकार करने के लिए लोगो को लाइट बंद करने के लिए. क्या आपके आन्दोलन पर देश विरोधी और नक्सलियो के प्रभाव की छाया नहीं है. क्या पुलिस को यह ही काफी नहीं आपको गिरफ्तार करने के लिए की आप लोगो को देश विरोधी कृत्यों के लिए उकसा रहे है. १५ अगस्त १९४७ को जहाँ देश का चप्पा चप्पा रौशनी से नहा रहा था. उस समय लोगो की लालटेनो में तेल नहीं था तो भी देश का हर वर्ग उन टिमटिमाती लालटेनो से ही गाँव शहर जगमगा रहा था. और आज २१ वी सदी की सुपर पॉवर भारत "एक महाशक्ति" को आप अन्धकार में झोकने का कुकर्त्ये कर रहे है. आप लाख अच्छे आन्दोलन कर रहे है परन्तु इस कृत्ये को माफ़ नहीं किया जा सकता है.

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  4. आप को मालूम भी है १५ अगस्त के दिन अन्धकार करने का "सांकेतिक" कृत्ये का दूरगामी प्रभाव क्या पड़ता है. क्या आपने एक मिनट के लिए भी सोचा है की देश की राजधानी दिल्ली में १९२ देशो के राजदूतो और अन्य नागरिको ने भारत और उसके नागरिको के बारे में क्या धारणा बनी होगी. आप की इसी अदुर्दार्शिता का मैं समर्थन नहीं करता हूँ.
    यह कौन सा मापदंड है की आपके आन्दोलन को भ्रष्ट वकील चला सकते है, संदिघ्द नौकरशाह चला सकते है, बहरूपिये भगवा स्वामी चला सकते है परन्तु देश को "संसद ' नहीं चला सकती.
    यह कौन सा माप दंड है बिना किसी सबूत के देश के प्रधानमंत्री को आप गाली दे परन्तु अपने को "तुम" कहेने भर से बवाल पैदा कर दे.
    यह कौन सा मापदंड है के अपने "विरोध" करने के अधिकार पर संविधान की दुहाई दे परन्तु देश के सम्मानिये प्रधानमंत्री पद (पर बैठे व्यक्ति) के लाल किले पर झंड फेहराने पर कटाक्ष करे. हम भी श्री मनमोहन सिंह जी का विरोध करते है परन्तु उनके लाल किले पर झंडा फेहराने के संवेधानिक अधिकार पर कुठाराघात नहीं कर सकते.
    यह कौन सा मापदंड है बाबा राम देव के देशभक्त नोजवानो को इकठा करने पर विरोध और स्वम आपके लोगो को नोकरियो और स्कुलो से छुट्टी लेने का स्वयंभू आगाज. की मेरे आन्दोलन को छुट्टी लेकर आन्दोलन में साथ दो.
    यह कौन सा मापदंड है की मैं सही और सरकार गलत. सरकार लाख गलत है परन्तु है तो वो १२० करोड़ लोगो की प्रतिनिधि. आप किसका परतिनिधित्व करते है. दो वकील और एक पूर्व नौकरशाह जिसमें से एक स्वामी "अग्निवेश" भी गायब है. जो काले धन और भ्रष्टाचार के आन्दोलन की रुपरेखा खीचने वाले पुरोधा और जनक बाबा रामदेव को भी अपने साथ नहीं रख सका. जो अग्निवेश को भी साथ न रख सका. आप पांच लोगो को साथ नहीं रख पा रहे है तो १२० करोड़ लोगो को उकसा कर उनकी आकांक्षा से न्याय कर पाएंगे?
    श्री अन्ना हज्जारे जी में आपके जज्बे को सलाम करता हूँ, आपकी भावनाओ का भी आदर करता हूँ, परन्तु मैं आप पर आरोप लगाता हूँ की आपने चंद लोगो के हाथो का मोहरा बनकर देश में होने वाली व्यवस्था परिवर्तन की एक विराट क्रांति की पीठ में छुरा घोपा है. आपने देश के नोजवानो के हाथो में क्रांति की मशाल की जगह हिजड़ो वाली मोमबती पकडवा दी है. आपने काले धन और भ्रष्टाचार के मुद्दे से ध्यान बटा कर "एक जन लोकपाल " बिल पर सुई अटका दी है. देश की आने वाली नसले आपको क्रांति की समय अवधि बढाने का कसूरवार जरुर मानेगी क्यूंकि क्रांति तो होगी पर अब थोडा समय और लगेगा. और इस बात के लिए मैं आपका समर्थन नहीं करता.
    श्री अन्ना जी मैं आपको लाख विरोधी हूँ परन्तु आपके "विरोध" करने के संवेधानिक हक़ और हकूक का समर्थन करता हूँ. क्यूंकि "विरोध" करने के अधिकार की रक्षा करना ही किसी भी लोकतंत्र के टिके होने की गारेंटी है.

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